Tuesday, September 28, 2021

फील्ड मार्शल मानेकशॉ की दिलचस्प अनसुनी कहानियाँ

" सैम बहादुर "-फील्ड मार्शल मानेकशॉ की दिलचस्प अनसुनी कहानियाँ 


फील्ड मार्शल मानेकशॉ -

सैम होमुरसजी फ्रेम जी जमशेदजी मानेकशॉ नाम के भारत के निडर ,जिंदादिल सैनिक ,जिसको पूरी दुनिआ सैम बहादुर के नाम से जानती है।  भारतीय सेना के प्रथम  फील्ड मार्शल ,सैन्य क्रॉस , पद्म भूषण , पद्म  विभूषण जैसे तमगो से जिनके सीने सजे हुए थे । जिनको गोरखा रेजिमेंट में सैम बहादुर जैसा नाम मिला। मानेकशॉ के नेतृत्व में भारत में सन १९७१  में हुए भारत -पाकिस्तान युद्ध में विजय प्राप्त की ,  परिणाम स्वरुप बंगलादेश का जन्म हुआ। 

मार्शल मानेकशॉ का जन्म - 

मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 में अमृतसर में एक पारसी परिवार में हुआ था। मानेकशॉ की प्रांरभिक शिक्षा अमृतसर  हुयी , बाद में वो नैनीताल  शेरवुड कॉलेज में दाखिल हो गए। मानेकशॉ ने 1932 में इंडियन मिलिट्री एकडेमी में दाखिला लिया। वो उस बैच के चुने हुए 40 छात्रों में से एक थे। 


मानेकशॉ के व्यक्तित्व की दिलचस्प कहानियाँ - 

फील्ड मार्शल मानेकशॉ का वयक्तित्व काफी प्रभावशाली,दमदार और जिंदादिल था , वो अपनी हाजिरजवाबी के लिए बहुत मशहूर थे। रौबीले मूछों वाले , हर बात पर सटीक जवाब देना उनके व्यक्तित्व की पहचान थी। उनके करीबी जानने वालो के अनुसार सैम मानेकशॉ हर तरीके से एक पक्के आर्मी वाले थे। 
उनके जीवन से जुड़े कुछ किस्सों से उनके व्यक्तित्व की जानकारी  पता चलती है।

मानेकशॉ कहते थे - "अगर कोई सिपाही कहे कि वो मौत से नहीं डरता तो वो झूठ बोल रहा है या तो वो गोरखा है। "

  • भारत -पाकिस्तान के बीच 1971 के युद्ध शुरू होने वाला था ,तब उस वक़्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने जनरल मानेकशॉ  पूछा -" कि क्या लड़ाई की तैयारियां पूरी है ?" इस पर मानेकशॉ ने तुरंत जवाब दिया -"आई एम ऑलवेज रेडी स्वीटी " , इंदिरा गाँधी को स्वीटी कहने का ये हुनर सिर्फ मानेकशॉ के पास ही था। 


  • 1971 के भारत -पाकिस्तान के युद्ध के बीच में ही प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी दिमाग में यह बात बैठ गयी कि मानेकशॉ आर्मी की मदद से तख्ता पलट करने की कोशिश करने वाले है। इस पर इंदिरा के पूछने पर मानेकशॉ ने सीधे इंदिरा गाँधी से  कह दिया " कि क्या आपको नहीं लगता है की मैं आपकी जगह पर आने लायक नहीं  हूँ, मैडम ? आपकी नाक लंबी है ,मेरी भी नाक लंबी है ,लेकिन मैं दूसरों के मामले में नाक नहीं घुसाता हूँ। "
  •  लड़ाई के मैदान में सात गोलियां लगने के बाद भी जब जनरल मानेकशॉ मिलिट्री अस्पताल पहुचें , तब डॉक्टर ने उनसे पूछा कि " क्या हुआ ?" मानेकशॉ के कहा -" अरे कुछ नहीं ,  गधे ने लात मार दी। "
  • 1962 में जब मिजोरम की एक बटालियन ने भारत -चायना के युद्ध से दूर रहने की कोशिश की तो मानेकशॉ ने उस बटालियन को पार्सल में चूड़ी  डिब्बे के साथ एक नोट भेजा, जिस पर लिखा कि अगर लड़ाई से पीछे  रहे हो तो अपने आदमियों को ये पहनने को बोल दो ,फिर उस बटालियन ने वो चूड़ी का डिब्बा वापस कर के युद्ध में हिस्सा लिया। 
  • 1971 की लड़ाई के बाद उनसे पूछा गया था कि अगर बॅटवारे के वक़्त वो पाकिस्तान चले गए होते तो  होता ,इस पर सैम मानेकशॉ ने कहा -" होता क्या पाकिस्तान 1971 का युद्ध जीत जाता। "

अपने ऐसे ही मज़ेदार हाज़िर जवाबी से सैम मानेकशॉ लोगो के दिलों पर राज करते थे। 
फील्ड मार्शल मानेकशॉ जितने दिलचस्प ,हाजिर जवाबी थे उतने ही वह अपनी निडरता , बहादुरी ,दबंगता , तेज बुध्दि के लिए भी याद किये जाते है। 

फील्ड मार्शल मानेकशॉ को किसने "सैम " नाम दिया। 

1946 में मानेकशॉ ग्रेड स्टाफ ऑफिसर बनकर मिलिट्री ऑपरेशन डॉयरेक्ट में सेवारत रहे, भारत के विभाजन के बाद १९४७-४८ की भारत-पाकिस्तान युद्ध 1947 की लड़ाई में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत की आज़ादी के बाद गोरखों ने ही कमान सँभालने वाले वे पहले भारतीय अधिकारी थे। गोरखों ने ही उन्हें " सैम बहादुर " के नाम से उन्हें सबसे पहले पुकारना शुरू किया था। 
बाद में उनके दोस्त ,पत्नी और करीबी भी उन्हें सैम कह कर पुकारने लगे। 

मानेकशॉ की उपलब्धियां -



नेतृत्व -
सैम मानेकशॉ ने 1934 से 2008 तक भारतीय सेना के उच्च पद पर रह कर देश की सेवा की। मानेकशॉ का जीवन बहुत महत्वपूर्ण उपलब्धियों से भरा है। सैम मानेकशॉ भारत  के पहले फील्ड मार्शल बने। उनके अंतर्गत पूर्वी कमान , पश्चिमी कमान , आइवी क्राप्स , डिफेन्स सर्विसेज स्टाफ कॉलेज ,26 वें इन्फेंट्री डिवीजन,इंफ्रेंट्री स्कूल ,167 वां इंफ्रेंट्री ब्रिग्रेड ,सैन्य संचालन निदेशालय ये सभी प्रमुख विभाग उनके नेतृत्व में रहे। 

युद्ध -
 द्वितीय विश्व युद्ध 
1947 भारत -पाकिस्तान युद्ध 
भारत -चीन युद्ध 
1965 का भारत -पाकिस्तान युद्ध 
1971 भारत -पाकिस्तान युद्ध 
बांग्लादेश मुक्ति युद्ध 

सम्मान -

प्रथम भारतीय फील्ड मार्शल
पद्म विभूषण 
पद्म भूषण 
सैन्य क्रॉस 

उनके सम्मान का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की भारत सरकार ने उनके नाम की डाक टिकट जारी किये थे। 




सैम बहादुर मानेकशॉ की मृत्यु कैसे हुई ?



सैम बहादुर मानेकशॉ की मृत्यु 94 वर्ष की आयु में 27 जून 2008 में दोपहर १२:३० पर तमिलनाडु के वेलिंगटन अस्पताल में निमोनिया से हुयी थी। उन्हें तमिलनाडु के ऊटाकामुंड ( ऊटी ) में पारसी कब्रिस्तान में उनकी पत्नी की कब्र के बगल में सैन्य सम्मान के साथ दफनाया गया। 

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